वर्ष 2018 में तमिल सिनेमा ने हमें प्रेम का अर्थ समझाने के लिए एक खूबसूरत फिल्म रिलीज़ की थी जिसका नाम है ’96’ जो हिन्दी भाषा में यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। फिल्म में विजय सेतुपति और तृषा कृष्णन की रोमांटिक कहानी दिखाई गयी है। जिन्होंने यह फिल्म देखी है, वे जानते ही होंगे और जिन्होंने अभी तक नहीं देखी है मेरी गुज़ारिश है कि एक बार ज़रूर देखें! अब इस फ़िल्म के निर्देशक सी प्रेम कुमार अपनी एक और शानदार रचना लेकर आये हैं जिसका नाम है ‘मेअढगन’ जो एक तमिल भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘सत्य की सुंदरता’।
कहानी एकदम नई है। चेन्नई में अपने परिवार के साथ रह रहा अरुल (अरविंद स्वामी) अपनी कजिन बहिन की शादी के लिए 22 साल बाद अपने गृहनगर तंजावुर वापिस आता है। जहाँ उसका बचपन बीता वहां पारिवारिक बंटवारे के बाद वो कभी नहीं आया लेकिन बहिन की शादी के लिए बेमन से एक रात के लिए आता है। शादी में उसे एक ऐसा शख्स मिलता है जो उसे अपना आदर्श मानता है। वो अनजान शख्स (कार्थी) उसकी अपने मेहमान की तरह सेवा करता है जबकि अरुल उसे पहचान भी नहीं पा रहा है लेकिन उसने उससे पीछा छुटाने के लिए झूठ बोल दिया है कि उसने उसे पहचान लिया है। अब ऐसी परिस्थिति बनती है कि अरुल को उसके घर रुकना पड़ता है तो उसकी बचपन की कुछ यादें ताजा होती हैं। यहाँ उसे पता चलता है कि वो शख्स उसे महज अपना आदर्श ही नहीं मानता बल्कि उसके नाम पर अपने होने वाले बच्चे का नाम भी रखना चाहता है। यहाँ से अरुल खुद को बहुत नीचा समझने लगता है क्योंकि वो अब तक उसका नाम भी नहीं जानता! वो आत्मग्लानि से खुद को कोसता हुआ रात में ही उसका घर छोड़कर चुपचाप अपने घर लौट आता है। इसके बाद क्या होता है इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी चाहिए।
फ़िल्म 96 की तरह मास्टरपीस तो नहीं लेकिन अच्छी जरूर है। फ़िल्म देखते समय “96” की याद दिलाती रहती है। कहानी 1996 से शुरू होती है और 2018 में खत्म होती है। एक दृश्य में “96” का पोस्टर भी दिखाई देता है। एक जगह उसी तरह बैकग्राउंड म्यूजिक भी सुनाई देता है। फ़िल्म का विषय जरूर अलग है लेकिन फ्लेवर एकदम वही है, जहाँ रिश्तों को महत्व दिया गया है। घर परिवार के महत्व को समझाया गया है। फ़िल्म की गति धीमी है लेकिन इसका सुरूर धीरे धीरे अपना रंग पकड़ता है और अंत में एक संतोषजनक और सुंदर क्लाइमेक्स आता है। एक बार देखनी चाहिए!