आज से 64 वर्ष पहले जूनून और फिल्मो के प्रति दीवानगी से लबरेज़ के.आसिफ नाम के एक दीवाने ने हिंदी सिनेमा के सुनहरे परदे पर ‘मुगले-ए-आज़म ‘नाम का ऐसा इतिहास रचा जिसकी चमक आज भी फीकी नहीं पड़ी …..मुगले-ए-आज़म को आसिफ जैसा कोई जुनूनी आदमी ही बना सकता था जिसमे सिनेमा के प्रति गहरा लगाव हो शायद इसलिए इसे बनने में इतने वर्ष लग गए स्टार कास्ट बदल गई ,हिंदी फिल्मो का युग काले-सफ़ेद से रंगीन ज़माने में बदल गया अगर नहीं बदला तो के.आसिफ का ‘मुग़ले-ए-आज़म ‘बनाने का जूनून…..हिंदी सिनेमा का अमर ग्रंथ ‘मुग़ले-ए-आज़म ‘ 5 अगस्त 1960 को रिलीज़ हुआ था , इस फिल्म को बनने में दस साल से ज्यादा वक्त लगा ……
1946 के बाद वर्ष 1951 में दुबारा फिर से ‘मुग़ल-ए-आज़म’ का निर्माण कार्य आरंभ हुआ ,इस दौरान कई कलाकार बदल गए , देश का बॅंटवारा हो गया ,फिल्म के एक फाइनेसर पाकिस्तान चले गए , ….जब लोग कहते की आसिफ आखिर कोई तुम्हारी ‘ मुग़ल-ए-आज़म ‘क्यों देखेगा ? तो के.आसिफ बड़े इत्मियाँन से सिगरेट के कश लगा कर कहते ….” मुझे किसी और फिल्म से कोई मतलब नहीं , ‘मुग़ल-ए -आज़म ‘ मेरी फिल्म होगी ”..और ऐसा हुआ भी …. दस साल बाद सिनेमा के परदे पर जब ..’मैं हिंदुस्तान हूँ ‘ ..आवाज गूंजी तो हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया आसिफ की कायल हो गई
मुगल-ए-आज़म 5 अगस्त 1960 को देश भर के 150 सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई, जिसने बॉलीवुड में सबसे अधिक फिल्म रिलीज़ का रिकॉर्ड स्थापित किया पहली बार किसी फिल्म के स्पेशल प्रिंटेड टिकट छपे जिसे हासिल करने के लिए इतनी मारामारी मची की लोग एडवांस टिकट लेने के लिए सिनेमा घर के बाहर रात को चारपाई डालकर सोये कमोबेश यही हाल पूरे भारत में था .. ……अकबर के आगे सीना तान कर खड़े सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी को सरहद के पार से भी भरपूर साथ मिला लोग पाकिस्तान और अफगानिस्तान से वीजा लेकर भारत सिर्फ ‘मुग़ले-ए-आज़म देखने आये ….
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मुग़ल-ए-आज़म सामंती समाज में विरोध स्वरूप तन-कर खड़े ’प्रेम’ का अमर दस्तावेज़ है एक तरफ विशाल मुगल साम्राज्य की शान तो दूसरी तरफ मुहब्बत का जुनून. …प्रेम के नाम पर हुई बाप बेटे की इस जंग में कला साहित्य की दुनिया को ‘अनारकली ‘मिली,… हिंदी सिनेमा को अपना ‘ट्रेजडी किंग’ मिला और आने वाले कई दशकों के लिए हिन्दी सिनेमा की ऐतिहासिक फिल्मों को तौलने का पैमाना तय हुआ फिल्म ने लोकप्रयता के सारे रिकार्ड्स तोड़ दिए ..के.आसिफ का ख़्वाब दर्शकों के दिलों को छू गया था ……..
आज भी कहते हैं कि मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री में डाइरेक्टर से लेकर स्पॉट बॉय तक हर आदमी के पास सुनाने के लिए ’मुग़ल-ए-आज़म’ से जुड़ी कोई न कोई कहानी जरूर है…..आज 64 साल बाद भी इस फिल्म ‘मुग़ले-ए-आज़म ‘ का जादू लोगो के सर से उतरा नहीं …यह फ़िल्म हिन्दी सिनेमा इतिहास की सफलतम फ़िल्मों में से है। इसे के.आसिफ़ के शानदार निर्देशन, भव्य सेटों, बेहतरीन संगीत के लिये आज भी याद किया जाता है …..
आज के दिन ही जब हिंदी सिनेमा के सुनहरे परदे पर” मैं हिंदुस्तान हूँ ” गूंजा तो इतिहास में दर्ज़ हो गया हिंदी सिनेमा के सबसे भव्य प्रेम महाकाव्य ”मुगल-ए-आज़म” की रिलीज़ की 64 वर्षगाँठ पर आप सभी सिनेमा प्रेमियों को हार्दिक बधाई…