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अखंड भारत के पहले हास्य अभिनेता नूर मोहम्मद के नूर मोहम्मद चार्ली बनने का सफर

अखंड भारत के पहले हास्य अभिनेता नूर मोहम्मद ने अपने अभिनय और अद्वितीय हास्य के बल पर भारतीय सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई। हास्य के बादशाह कहे जाने वाले चार्ली चैपलिन के प्रति उनके लगाव ने उन्हें चार्ली चैपलिन की तरह अभिनय करने के लिए प्रेरित किया। नूर मोहम्मद के चलने का तरीका, उनके चेहरे के हाव-भाव और चार्ली चैपलिन के जैसी दिखने वाली मूंछें, सब कुछ लगभग चार्ली चैपलिन से प्रेरित था, जिसके चलते उन्हें नूर मोहम्मद को नूर मोहम्मद चार्ली का नाम मिला।

फिल्मी सफर की शुरुआत

1932 में बी. आर. ओबेरॉय द्वारा निर्देशित फिल्म “पाक दामन रक़्क़ासा” में उनका एक अनूठा किरदार ‘बाबा चार्ली’ के नाम से पर्दे पर आया, जिसने देशभर में धूम मचा दी। इसके बाद नूर मोहम्मद चार्ली भारतीय सिनेमा के सबसे लोकप्रिय हास्य अभिनेताओं में से एक बन गए। उन्होंने “चांद तारा” और “ग़ज़ल” जैसी कई फिल्मों में प्रमुख हास्य भूमिकाएं निभाईं, जहाँ उन्हें उस समय की प्रमुख अभिनेत्रियों के साथ जोड़ा गया।

निर्देशन और संगीत में सफलता

नूर मोहम्मद चार्ली ने केवल अभिनय में ही नहीं, बल्कि निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उनकी निर्देशित फिल्म “ढिंढोरा” एक बड़ी हिट साबित हुई। खास बात यह थी कि उस समय आमतौर पर प्रमुख नायकों के लिए ही गीत फिल्माए जाते थे, लेकिन नूर मोहम्मद चार्ली के ऊपर भी गाने फिल्माए गए, जो उनके चरित्र की लोकप्रियता को दर्शाता है। उनके कॉमिक गाने और संवाद इतने प्रसिद्ध हुए कि बाद में जॉनी वॉकर और महमूद जैसे हास्य अभिनेताओं ने उनके अंदाज से प्रेरणा ली।

विभाजन के बाद का जीवन

भारत के विभाजन के बाद नूर मोहम्मद चार्ली पाकिस्तान चले गए, जहाँ उन्होंने कई फिल्मों में काम किया। हालाँकि, 1960 में वह वापस भारत लौटे और अपनी अंतिम फिल्म “अकेली मत जइयो” (1963) में काम किया, जो रंजीत स्टूडियो की भी अंतिम फिल्म थी। इस फिल्म के बाद, उन्हें भारतीय नागरिकता नहीं दी गई, जिससे निराश होकर नूर मोहम्मद चार्ली को अमेरिका में प्रवास करना पड़ा।

चार्ली का अद्वितीय योगदान

नूर मोहम्मद चार्ली का भारतीय सिनेमा में योगदान अतुलनीय है। उन्होंने न केवल चार्ली चैपलिन के प्रति अपने प्रेम को भारतीय दर्शकों के सामने जीवंत किया, बल्कि भारतीय हास्य सिनेमा को एक नया आयाम भी दिया। उनके द्वारा प्रस्तुत हास्य पात्र और संवाद आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं।

उनकी विरासत भारतीय सिनेमा के सुनहरे पन्नों में हमेशा अमर रहेगी, और उन्होंने जो हास्य की बुनियाद रखी, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

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