ये गीत मेरे कुछ बेहद पसंदीदा गीतों में से एक है…….गुलज़ार यूँ भी अपनी बेहतरीन ,दिल को छू लेने वाली शायरी के लिए मशहूर हैं…..गुलज़ार द्वारा लिखित, निर्देशित फ़िल्म ‘इजाज़त’ का ये शीर्षक गीत है….गीत आशा भोसले जी की मधुर आवाज में है और अभिनेता अशोक कुमार की नातिन अनुराधा पटेल पर इसे फिल्माया गया है जिसने फिल्म में ‘माया ‘का किरदार निभाया था …
सबसे पहले गीत के बोलों पर एक निगाह डाल लेते हैं-
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
सावन के कुछ भीगे-भीगे दिन रखे हैं
और मेरे इक खत में लिपटी रात पड़ी है
वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
मेरा कुछ सामान…
इस गीत का आरम्भ प्रेमी की पत्नी द्वारा नायक के पूर्व प्रेम सम्बन्ध खत्म करने के आग्रह से होता है।……..प्रेमिका का सामान उसके पास भेज दिया गया है जो यह संकेत देता है कि अब उसके सामान या उसकी, नायक के जीवन मे कोई जगह नहीं है। प्रेमिका समान की प्राप्ति के बाद धन्यवाद स्वरूप एक पत्र भेजती है और उस पत्र में उन बीती हुई यादों का मार्मिक चित्रण करती है। …….सम्बन्ध खत्म होने से प्रेम खत्म नहीं होता ,प्रेम ही जीवन की सबसे कीमती पूंजी है।यही इस गीत का मूल स्वर है।….
वह कहती है कि उसका कुछ सामान अब भी वहीं पड़ा हुआ है जो अब नायक के किसी काम का नहीं है तो उसे भी जल्दी भेजने का कष्ट किया जाए। उस सामान में सावन , पतझड़, बारिश, चांदनी रातों में अभिसार समेत वो सारी यादें जो अब उसकी धरोहर हैं, भेज दी जाएं।….
सावन के भीगे दिन जो उन्होंने साथ बिताए।ऐसी ही एक रात को लिखा गया खत जो शायद उन्होंने मिलकर लिखा था वह तो वापस भेज दिया गया मगर वह रात अभी तक वहीं रह गयी है उस जागती हुई जीवित रात को बुझा दिया जाए अर्थात उसकी यादें वापस कर दी जाएं।
पतझड़ में कुछ पत्तों के, गिरने की आहट
कानों में इक बार पहन के लौट आई थी
पतझड़ की वो शाख अभी तक कांप रही है
वो शाख थिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
पतझड़ के मौसम में झरते हुए पीले पत्तों की सरसराहट और उनकी प्यार भरी सरगोशियों की आवाज़ ,नायिका ने उन्हें कानों में आभूषण की तरह धारण किया था वे कीमती ध्वनियां अब भी वहीं पड़ी हैं,उन्हें भी वापस भेज दो। एक शाखा जो अपने पत्तों से बिछुड़ने के कारण कांप रही थी ,उस जैसी ही दशा प्रेमिका की भी है। उस शाख को स्थिर करके वह अनुभूति भी वापस भेज दी जाए।
इक अकेली छतरी में जब आधे-आधे भीग रहे थे
आधे सूखे, आधे गीले, सूखा तो मैं ले आयी थी
गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
बरसात में एक छतरी में प्रेमी के साथ आधे भीगना उसकी प्रिय यादों में से है। उस वर्षा में तन आधा भीगा परंतु उसके साथ प्रेम की वर्षा में प्रेमिका सर से पांव तक सराबोर हो गयी थी। बूंदों से गीले वस्त्र जल्दी सुख गए परंतु प्रेम की रसवर्षा में अब भी मन गीला है,डूबा हुआ है।बिस्तर के पास वे यादें अवश्य पड़ी होंगीं ,वे यादें भी भिजवा दी जाएं।
एक सौ सोलह चांद की रातें, एक तुम्हारे कांधे का तिल
गीली मेंहदी की खुशबू, झुठमूठ के शिकवे कुछ
झूठमूठ के वादे भी सब याद करा दूँ
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
प्रेममयी 116 चांदनी रातें, ये इतनी खूबसूरत थीं कि प्रेमिका ने उन रातों को जोड़कर यादों में बसा लिया है जब वे तन मन से एक दूसरे के हो गए थे। एक दूसरे के तन मन पर यहां तक कि नायक के कंधे पर स्थित तिल भी प्रेमिका पहचानती है।अर्थात उसके प्रेम के अधिकार क्षेत्र में रातें ही नहीं प्रेमी का तन मन भी शामिल है, तन भले ही पत्नी के पास रहे वह केवल कंधे पर स्थित तिल पर अधिकार चाहती है। उसे वह सब भी वापस चाहिए।
प्रेमिका इस प्रेम को अपना अस्तित्व मानती है ,प्रेमी अब उसका नहीं हो सकता क्योंकि प्रेमी ने विवाह कर लिया है।इसलिए वह इतनी ही इजाज़त चाहती है कि ये यादें वह दफना देगी मगर इनके बिना जी पाना उसके लिए असंभव है। ये यादें और प्रेम उसके जीने का सहारा हैं जिन्हें दफनाकर दूर करने के स्थान पर वह इनको सीने से लगाकर साथ साथ चिरनिद्रा में सो जाना चाहती है।प्रेम को जीवन से अलगकर के जी पाना उसके लिए असंभव है।
एक इजाज़त दे दो बस, जब इसको दफ़नाऊँगी
मैं भी वहीं सो जाऊंगी, मैं भी वहीं सो जाऊंगी
प्रेम का ऐसा गहरा और मार्मिक चित्रण करने में गुलज़ार जैसा संवेदनशील कवि ही सफल हो सकता है।
कहते हैं ना, “एक बार जिसने प्रेम कर लिया वह फिर कभी किसी से घृणा कर ही नहीं सकता।”
गुलज़ार ने इसके अतिरिक्त नमक इस्क का जैसे लोकप्रिय गीत की भी रचना की है। जिसमे इश्क को जीवन मे वही दर्जा दिया है, जो भोजन में नमक का होता है अर्थात अति महत्वपूर्ण।………….