यह बात 1992 की है जब सुभाष घई ने पहली बार शाहरुख खान से मुलाकात की थी। उस समय शाहरुख अपने करियर की शुरुआत कर रहे थे और धीरे-धीरे इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना रहे थे। सुभाष घई, जो पहले ही बॉलीवुड में एक सफल निर्देशक के रूप में स्थापित हो चुके थे, शाहरुख से प्रभावित नहीं थे। उन्होंने उस समय अपने आसपास के लोगों से कहा था कि शाहरुख में घमंड है और अगर वह कभी भी सफल होते हैं, तो अपने घमंड और बुरे व्यवहार से सभी को नुकसान पहुंचाएंगे।
हालांकि, समय बीतता गया और शाहरुख खान ने अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के बल पर इंडस्ट्री में अपनी जगह बना ली। कुछ साल बाद, जब सुभाष घई ने एक पार्टी में शाहरुख से दोबारा मुलाकात की, तब उनकी धारणा बदल गई। यह पार्टी ‘कभी हां कभी ना’ की थी, जहां शाहरुख न सिर्फ अपनी पत्नी गौरी का ख्याल रख रहे थे, बल्कि उनके माता-पिता का भी ध्यान रख रहे थे।
इस मुलाकात में सुभाष घई ने शाहरुख का एक नया और मानवीय पक्ष देखा। उन्हें शाहरुख का परिवार के प्रति प्रेम और उनकी संवेदनशीलता महसूस हुई। इस घटना ने सुभाष घई के दिल और दिमाग पर गहरा प्रभाव डाला, और यहीं से शाहरुख को लेकर उनका दृष्टिकोण बदल गया।
यही वह पल था जब सुभाष घई ने सोचा कि शाहरुख को अपनी फिल्म ‘त्रिमूर्ति’ में कास्ट किया जा सकता है। बाद में शाहरुख ने ‘त्रिमूर्ति’ में काम किया और इस मुलाकात ने दोनों के बीच एक नए रिश्ते की शुरुआत की। इसके बाद सुभाष घई ने शाहरुख को ‘परदेस’ में कास्ट किया, जो कि दोनों के करियर के लिए एक महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई।
यह कहानी शाहरुख खान के व्यक्तित्व की गहराई और उनके प्रति लोगों की धारणा में बदलाव का एक उदाहरण है। समय के साथ, शाहरुख ने अपने व्यक्तित्व और काम से सभी का दिल जीत लिया, यहां तक कि सुभाष घई जैसे दिग्गज भी उनके फैन बन गए।